विंस्टन चर्चिल और डॉ. बाबासाहब आंबेडकर दोनों का नाम 20वीं सदी के ‘सबसे प्रभावशाली नेताओं’ में लिया गया है। दोनों को अपने-अपने देश का ‘सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति’ चुना गया है। दोनों ही लेखक, पत्रकार, इतिहासकार, वक्ता, सांसद और राजनेता थे। आज हम डॉ. आंबेडकर और चर्चिल के बीच समानताओं के बारे में जानेंगे। – Dr Ambedkar and Churchill
डॉ. आंबेडकर और चर्चिल
दो व्यक्ति सत्रह वर्ष के अंतराल पर और एक दूसरे से चार हजार मील की दूरी पर इस दुनिया में आए और न केवल अपने देश के बल्कि पूरे विश्व के सर्वोच्च नेताओं में से एक बन गए।
जिनमें से एक का नाम विंस्टन चर्चिल और दूसरे का नाम डॉ. बाबासाहब आंबेडकर। आइए इन दोनों दिग्गजों के बीच कुछ ख़ास समानताओं पर एक नज़र डालते हैं।
विंस्टन चर्चिल और डॉ. बाबासाहब आंबेडकर यह दो समकालीन व्यक्ती 20वीं शताब्दी के दुनिया के सबसे प्रभावशाली लोगों में से थे। इंग्लैंड में 1933 और 1946 में डॉ. आंबेडकर और चर्चिल एक दुसरे से मिल चुके हैं। दोनों को पिछली सदी के ‘सबसे प्रभावशाली नेता’ के रूप में वर्णित किया जाता है।
विंस्टन चर्चिल को द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों की जीत का वास्तुकार माना जाता है, जबकि डॉ. बाबासाहब आंबेडकर को दुनिया के सबसे बड़े लिखित संविधान का निर्माता माना जाता है।
चर्चिल ने दो अंगुलियां उठाकर अंग्रेजों को जीत के लिए वी (V for Victory) का उत्साहजनक संदेश दिया, जबकि भारतीयों को एक मार्गदर्शक संदेश देते हुए, बाबासाहब ने अपनी तर्जनी को उठाकर संसद भवन की ओर इशारा किया।
Similarities between Dr BR Ambedkar and Winston Churchill
दोनों की प्राथमिक जानकारी
विंस्टन चर्चिल (1874-1965) का पूरा नाम विंस्टन लियोनार्ड स्पेंसर चर्चिल है, जबकि डॉ. बाबासाहब आंबेडकर (1891-1956) का पूरा नाम डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर है।
डॉ. आंबेडकर दुनिया के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति थे, जबकि चर्चिल का एक सांसद के रूप में दुनिया में सबसे लंबा कार्यकाल रहा। 1990 से 1965 तक चर्चिल ब्रिटिश पार्लिमेंट के सदस्य थे। बाबासाहब ने 1926 से 1956 तक लगातार कई राजनीतिक पदों पर आसीन रहे।
Dr. Babasaheb Ambedkar और Winston Churchill विश्व इतिहास में हुए दो महान एवं लोकप्रिय व्यक्तित्व भी हैं। दोनों ही लेखक, पत्रकार, इतिहासकार, प्रभावशाली वक्ता, उत्कृष्ट सांसद और कुशल राजनीतिज्ञ थे। दोनों बहुआयामी धुरंधर (polymath) के रूप में प्रसिद्ध हैं। Ambedkar and Churchill
एक ‘सर्वश्रेष्ठ ब्रिटिश’ तो दूसरा ‘सर्वश्रेष्ठ भारतीय’
विंस्टन चर्चिल और डॉ. आंबेडकर को अपने-अपने देशों में महानतम व्यक्ति या सर्वश्रेष्ठ व्यक्ती (Greatest person) के रूप में चुना गया हैं।
2002 में इंग्लैंड के BBC सर्वेक्षण में, “100 सर्वश्रेष्ठ ब्रिटिश” (100 Greatest Britons) में पहले स्थान पर विंस्टन चर्चिल चुने गए, जिन्होंने साहित्यिक शेक्सपियर, समाजशास्त्री चार्ल्स डार्विन और इंजीनियर ब्रुनेल, वैज्ञानिक न्यूटन तक को पीछे छोड़ दिया।
इसके दस साल बाद, 2012 में भारत में किए गए “सर्वश्रेष्ठ भारतीय” (The Greatest Indian) नामक सर्वेक्षण में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर को महानतम भारतीय के रूप में चुने गए। इस सर्वे में बाबासाहब ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, व्यवसायी जेआरडी टाटा, वैज्ञानिक व राष्ट्रपति डॉ. कलाम,और गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल को पीछे छोड़ दिया।
प्रारंभ में, इस सर्वेक्षण में महात्मा गांधी भी में थे, लेकिन सर्वेक्षण के परीक्षकों ने गांधी को प्रतियोगिता की दूसरी स्टेप से इस आधार पर बाहर कर दिया कि उनकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। इसपर आंबेडकरवादी विचारकों ने कहा था कि ‘परीक्षकों ने गांधी को अंतरराष्ट्रीय अपमान से बचाने के लिए ऐसा किया।’
यदि आधुनिक भारत के निर्माता डॉ. आंबेडकर के साथ भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी इस प्रतियोगिता में होते, तो दोनों में ‘सबसे महान व्यक्ति कौन?’ इस पर रोचक लड़ाई होती। अगर जनता के वोटों पर ही ‘सर्वश्रेष्ठ भारतीय’ का चुनाव होता तो बाबासाहेब बापू को पीछे छोड़ देने अधिक संभावनाएं थीं, ऐसा पिछले तथ्य और आंकड़ों को देखेने पर कहा जा सकता है। Ambedkar and Churchill
पैंथियन के ऐतिहासिक लोकप्रियता सूचकांक 2022 के अनुसार, अब तक के सबसे लोकप्रिय ब्रिटिश लोगों में विंस्टन चर्चिल 11 नंबर पर है; तथा अब तक के सबसे लोकप्रिय भारतीयों में डॉक्टर आंबेडकर 14वें स्थान पर है।
एक ने ‘भारत को गणराज्य’ बनाया और दूसरे ने ‘नाज़ी जर्मनी पर जीत’ दिलाई
विंस्टन चर्चिल इंग्लैंड के प्रधान मंत्री थे। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर भारत के पहले कानून और न्याय मंत्री थे।
चर्चिल के नेतृत्व ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एक कठिन अवधि के दौरान इंग्लैंड को नाज़ी जर्मनी को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जबकि भारत देेश स्वतंत्र होने के बाद भारत को अपना संविधान बनाने और देश को एक लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर की भूमिका सबसे निर्णायक थी।
दोनों ने ही किया महात्मा गांधी का विरोध
चर्चिल और डॉ. आंबेडकर दोनों ही महात्मा गांधी के कटु विरोधी थे। गांधी का विरोध करने के लिए दोनों की अलग-अलग पृष्ठभूमि और कारण थे। चर्चिल का भारतीयों के बारे में और भारत को स्वतंत्रता देने के बारे में नकारात्मक दृष्टिकोण था। यदि वे 1945 के बाद प्रधान मंत्री बने रहते, तो भारतीय स्वतंत्रता में और देरी हो सकती थी।
चूंकि वे भारतीय स्वतंत्रता के कट्टर विरोधी थे, इसलिए उन्होंने भारत को बहुत कम अधिकार देने की नीति को स्वीकार नहीं किया। लेकिन महात्मा गांधी भारत की आजादी की मांग कर रहे थे और उन्हें भारत समेत पूरी दुनिया से समर्थन मिल रहा था।
- “मिस्टर गांधी जैसे राजद्रोही, मिडिल टैंपिल वकील का अर्ध नग्न हालत में वॉयसराय के महल की सीढ़ियाँ चढ़ना और राजा के प्रतिनिधि से बराबर के स्तर पर बात करना बहुत ख़तरनाक और घृणास्पद था, ख़ासकर तब जब वो ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ असहयोग आँदोलन का नेतृत्व कर रहे थे. इस तरह का दृश्य भारत में अशांति को बढ़ा सकता है और वहाँ पर काम कर रहे श्वेत लोगों को परेशानी में डाल सकता है“, ऐसी टिप्पणी 1931 में चर्चिल ने गांधी के बारे में की थी।
- “अगर गांधी वास्तव में मर जाते हैं तो हमें एक बुरे आदमी और साम्राज्य के दुश्मन से छुटकारा मिल जाएगा. ऐसे समय जब सारी दुनिया में हमारी तूती बोल रही हो, एक छोटे बूढ़े आदमी के सामने जो हमेशा हमारा दुश्मन रहा हो, झुकना बुद्धिमानी नहीं है”, ऐसा चर्चिल ने वायसराय को पत्र में लिखा था।
भारत गणराज्य के पितामह डॉ. बाबासाहब आंबेडकर और भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बीच मतभेद भारत में बहुत प्रचलित हैं। बाबासाहब अस्पृश्यता उन्मूलन और जातिप्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे। बाबासाहब बहिष्कृत वर्गों, अछूतों के लिए कुछ ठोस राजनीतिक और सामाजिक अधिकार चाहते थे, लेकिन गांधी ने अक्सर इसका कड़ा विरोध किया।
प्रमुख उदाहरणों में से एक अछूतों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों से इनकार और डॉक्टर आंबेडकर से इच्छा विरुद्ध पुणे समझौता कराना है। हालांकि गांधी ने छुआछूत का विरोध किया, लेकिन वे जाति व्यवस्था के कट्टर समर्थक थे। नतीजतन, डॉ. आंबेडकर ने अंत तक गांधी का विरोध किया।
- “वो (गांधी) बिलकुल रूढ़िवादी हिन्दू थे. वो कभी एक सुधारक नहीं थे. उनकी ऐसी कोई सोच नहीं थी, वो अस्पृश्यता के बारे में सिर्फ़ इसलिए बात करते थे कि अस्पृश्यों को कांग्रेस के साथ जोड़ सकें. ये एक बात थी. दूसरी बात, वो चाहते थे कि अस्पृश्य स्वराज की उनकी अवधारणा का विरोध न करें…..” ऐसा डॉ. आंबेडकर ने कहा था।
- “वो कभी महात्मा नहीं थे. मैं उन्हें महात्मा कहने से इनकार करता हूं. मैंने अपनी ज़िंदगी में उन्हें कभी महात्मा नहीं कहा. वो इस पद के लायक़ कभी नहीं थे, नैतिकता के लिहाज़ से भी”, गांधी के बारे में यह बात आंंबेडकर ने 26 फरवरी 1955 को बीबीसी रेडियो को दिए एक साक्षात्कार में कही थी।
अपने-अपने देशों में सम्मानित और पूजनीय
जिस प्रकार इंग्लैंड में चर्चिल सम्मानित हैं, उसी प्रकार डॉ. आंबेडकर भारतीयों के लिए पूजनीय हैं। दोनों का अनुयायी वर्ग बहुत बड़ा है।
डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर भारत और इंग्लैंड दोनों में सम्मानित और लोकप्रिय हैं। 2015 में इंग्लैंड में उनका एक भव्य स्मारक ‘डॉ. आंबेडकर हाऊस’ भी बनाया गया है। हालांकि भारत में अपनी नकारात्मक छवि के कारण चर्चिल भारतीय लोगों के बीच काफी अलोकप्रिय है।
हिटलर के नाज़ीवाद के विरोधी
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर और विंस्टन चर्चिल दोनों ने नाज़ीवाद का विरोध किया। एडॉल्फ हिटलर एक विश्व प्रसिद्ध तानाशाह है, जबकि दोनों ही लोकतंत्र में विश्वास करते थे। Ambedkar and Churchill
संदर्भ –
- हिन्दी विकिपीडिया : डॉ. भीमराव आंबेडकर
- हिन्दी विकिपीडिया : सर विंस्टन चर्चिल
- यह पोस्ट मैंने फरवरी 2019 में फेसबुक पर लिखी थी
- गांधी बनाम चर्चिल (बीबीसी हिंदी)
- …तो गांधी मरता है तो मरने दो
- भीमराव आंबेडकर क्यों नहीं कहते थे गांधी को महात्मा
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