डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर समानता (equality) के कट्टर समर्थक थे और उन्होंने भारत में दलित आंदोलन का चेहरा बनकर अस्पृश्यता का उन्मूलन यानी विनाश करने का काम किया। – अस्पृश्यता उन्मूलन और डॉ आंबेडकर
अस्पृश्यता पर अम्बेडकर के विचार – भारतरत्न डॉ. बाबासाहब आंबेडकर न केवल भारत के बल्कि दुनिया के भी एक अग्रणी समाज सुधारक थे। उन्होंने अछूत, शोषित, पिछड़े और महिलाओं के उत्थान के लिए बहुत काम किया है तथा उनके अधिकारों के लिए भी लंबे समय तक संघर्ष किया।
आपको बता दें कि बाबासाहेब आंबेडकर से पहले कई महामानव हुए जिन्होंने छुआछूत को खत्म करने का प्रयास किया था लेकिन वे ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। न केवल दलितों के लिए बल्कि बाबासाहब आंंबेडकर दुनिया भर के शोषितों के लिए लड़े और उनकी प्रेरणा बने।
जिस प्रकार मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला को दुनिया के शोषितों के मसीहा के रूप में पेश करती है, इसी तरह बाबासाहब को भी पेश किया जाना चाहिए था। क्योंकि आंबेडकर का योगदान मार्टिन लूथर किंग तथा मंडेला के शोषितों के लिए किए गए योगदान से तनिक भी कम नहीं है।
जातिवाद (casteism) और छुआछूत (untouchability) के खिलाफ डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का संघर्ष बहुत व्यापक था। उन्होंने छुआछूत का विनाश अपने जीवन का मुख्य लक्ष्य बनाया। अस्पृश्यता का उन्मूलन का अर्थ यानी सदियों से चली आ रही अस्पृश्यता का अंत।
अस्पृश्यता उन्मूलन में डॉ. आंबेडकर का योगदान
समाज में अछूतों का जीवन कैसा है, उनकी सामाजिक स्थिति कैसी है, इसकी पूरी जानकारी और व्यावहारिक ज्ञान डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के पास था। उन्होंने स्वयं भी छुआछूत का दंश झेला था, इससे वे भली-भांति जानते थे कि अस्पृश्यता बहुत ही ज्यादा गलत एवं सबसे बड़ी कुरीति है। इसी वजह से बाबासाहेब ने उनके जीवन का लक्ष्य छुआछूत को खत्म करना बनाया।
Dr Ambedkar’s contribution to abolish of untouchability
अस्पृश्यता पर अम्बेडकर के विचारों की व्याख्या कीजिए। – बाबासाहेब ने “दलित समुदाय को न्याय दिलाने के लिए सत्याग्रह का रास्ता अपनाया।” उनका मत था कि स्वतंत्रता और समानता के अधिकारों को भीख मांगकर प्राप्त नहीं किया जा सकता, बल्कि उन्हें अपनी ताकत से अर्जित किया जाता है। साथ ही, बाबासाहेब ने अछुतों के मन में इस विचार को विकसित किया कि “आत्म-उद्धार किसी और की कृपा से नहीं होता, बल्कि उसे अपने आप को करना होता है” और उन्हें आत्म-सुधार के लिए सक्रिय बनाया।
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने 20 मार्च, 1927 को महाड़ के चवदार तालाब पर सत्याग्रह कर एक प्रतीकात्मक कृति करते हुए सार्वजनिक रूप से कहा कि हमें भी इंसानों की तरह जीने का अधिकार है। इसने 20 मार्च 1927 को मानवता और समानता का संदेश देने वाला एक स्वर्णिम दिन बना दिया। अछूतों को सार्वजनिक स्थानों से पीने का पानी लेने की मनाही थी, इसी तरह हिंदू मंदिरों में उनका प्रवेश वर्जित या निषिद्ध माना जाता था।
बाबासाहेब ने दूसरों की तरह मनुष्य के रूप में मंदिर प्रवेश सत्याग्रह करने का फैसला किया। 1930 से 1935 अवधि के दौरान, नासिक में कालाराम मंदिर सत्याग्रह चल रहा था। लेकिन फिर भी इस बीच दलितों का मंदिर में प्रवेश नहीं हुआ, कालाराम मंदिर के प्रशासन ने अछुतों के लिए मंदिर के द्वार नहीं खोलें! इससे हमें पता चलता है कि भारतीय समाज में जाति प्रथा एवं छुआछूत की जड़े कितनी गहरी थी। यह आंदोलन डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के नेतृत्व में चला था, इससे उनकी छवि एक मानवतावादी नेता के रूप में बनी।
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने जीवन भर दलितों-शोषितों के उद्धार के काम में खुद को समर्पित कर दिया। कालाराम मंदिर सत्याग्रह से पहले उन्होंने 1927 में महाड सत्याग्रह किया था। 25 दिसंबर, 1927 को, उन्होंने महाड़ में मनुस्मृति को जला दिया और एक नई स्मृति की मांग की जो हिंदू समाज के पुनर्निर्माण के लिए उपयोगी होगी। जीर्ण मनुस्मृति का दहन एक बहुत बड़ी घटना थी।
बाबासाहेब ने दलितों को विधायिका में सीट दिलाने और उन्हें वित्तीय और शैक्षिक रियायतें दिलाने के लिए अपना अहवाल साइमन कमिशन को भेजा था। उन्होंने विधायिका में महार वतन विधेयक को मंजूरी दिलाने की भी कोशिश की।
1930 में जब डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर पहले गोलमेज सम्मेलन के लिए लंदन के लिए रवाना हुए, तो उन्होंने किसानों, श्रमिकों, पिछड़े और हाशिए के समुदायों के अधिकारों के लिए अथक संघर्ष किया। 1931 के दूसरे गोलमेज सम्मेलन में उन्होंने अछूत समुदाय के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की मांग की, और सम्मेलन के सदस्यों को अलग निर्वाचन क्षेत्रों के महत्व के बारे में सफलतापूर्वक आश्वस्त किया।
उनके प्रयास सफल रहे और ब्रिटिश सरकार ने 1932 के सांप्रदायिक अधिनिर्णय (Communal Award) की घोषणा की और अछूतों को अलग निर्वाचन क्षेत्र देने की घोषणा की। लेकिन महात्मा गांधी अछूतों को अलग निर्वाचन क्षेत्र देने के सख्त खिलाफ थे। इसलिए उन्होंने इसके खिलाफ आमरण अनशन शुरू कर दिया।
इस समय, बाबासाहेब ने अपने कठोर रुख को त्याग दिया और अछूतों के लाभ के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की अपनी मांग वापस ले ली। गांधी और आंंबेडकर के बीच पुणे समझौता हुआ, और संयुक्त निर्वाचन क्षेत्र में अछूतों को 148 सीटें देने पर सहमति बनी। इस अवसर पर अछूत/दलित वर्ग यह पता चला कि बाबासाहेब उनके नेता है और उन्होंने गांधी को अपने नेता के रूप में खारिज कर दिया।
बाबासाहेब आंबेडकर ने अनुच्छेद 17 के अनुसार भारतीय संविधान द्वारा अस्पृश्यता का उन्मूलन किया गया।
Question 1: अस्पृश्यता उन्मूलन के लिए संघर्ष करने वाले दो प्रमुख सुधारकों के नाम लिखिए।
Answer: अस्पृश्यता उन्मूलन के लिए संघर्ष करने वाले दो प्रमुख सुधारकों के नाम – डॉ. बाबासाहब आंबेडकर और महात्मा ज्योतिराव फुले।
प्रश्न: भारतीय संविधान द्वारा अस्पृश्यता का उन्मूलन क्यों किया गया?
उत्तर: भारतीय संविधान द्वारा अस्पृश्यता का उन्मूलन किया गया क्योंकि अस्पृश्यता एक बड़ी सामाजिक एवं धार्मिक कुरीतियों में एक थीं।
प्रश्न: अस्पृश्यता का अंत किस अधिकार के अंतर्गत किया गया है?
उत्तर: अस्पृश्यता का अंत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 के अधिकार के अंतर्गत किया गया है।
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