डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर पर अटल बिहारी वाजपेयी के विचार

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने भाषणों, लेखों और चर्चाओं में भारतीय गणराज्य के संस्थापक डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के बारे में अपने विचार व्यक्त किये हैं। भारतीय इतिहास के दो महानतम नेताओं में से एक हैं बाबासाहेब आंबेडकर और दूसरे हैं महात्मा गांधी। इस लेख में हम जानेंगे कि प्रधानमंत्री अटल जी ने संविधान निर्माता बाबासाहब के बारे में क्या कहा था।

Atal Bihari Vajpayee on Babasaheb Ambedkar
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर पर अटल बिहारी वाजपेयी के विचार

Atal Bihari Vajpayee’s thoughts on Dr. Babasaheb Ambedkar

 1991 

भारत सरकार ने 1990-1991 में डॉ० बाबासाहेब आंबेडकर की जन्मशती मनाई थी। डॉ० आंबेडकर की जन्म शताब्दी के अवसर पर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (1924-2018) ने अपने विचार व्यक्त किये हैं। अटल जी ने अपने लेख में कहा,

भारत माता के महान सपूत डॉ० बाबासाहेब आंबेडकर अपने विराट व्यक्तित्व और कालजयी कृतित्व के कारण सदैव ही आदर के साथ स्मरण किए जाएंगे। उनका प्रखर पांडित्य, उनकी पारदर्शी प्रामाणिकता, उनकी विलक्षण वाग्विदग्धता, उनकी असाधारण संगठन कुशलता और अन्याय के विरुद्ध लोहा लेने की उनकी वज्र संकल्पबद्धता, उन्हें सहज ही एक महान इतिहास पुरुष के रूप में प्रतिष्ठित कर देती है।

डॉ० आंबेडकर दलित के रूप में जन्मे, दलितों के लिए जिए, दलितों के लिए जूझे और अंतिम क्षण तक दलितों का हित चिंतन करते हुए निर्वाण को प्राप्त हुए। किंतु इस आधार पर उन्हें दलित या हरिजन नेता कहना उनके साथ बड़ा अन्याय करना होगा। वे हमारे महान राष्ट्रीय नेताओं में थे और उनकी गणना, मार्टिन लूथर किंग की तरह, मानवमुक्तिदाता के रूप में की जाएगी।

बहुत लोगों को यह बात ज्ञात नहीं है कि जब डॉ० आंबेडकर को स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में शामिल किया गया तो वे आर्थिक नियोजन का मंत्रालय सम्हालना चाहते थे। किंतु उन्हें विधि मंत्रालय मिला। डाक्टर की उपाधि प्राप्त करने के लिए डॉ० आंबेडकर ने जो शोधप्रबन्ध लिखा था उसका विषय था – “द् प्राब्लम आव् द् रूपी”। वह इतना प्रभावशाली था कि सुप्रसिद्ध समाजवादी विचारक श्री हैराल्ड लास्की ने उस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इसका लेखक “बड़ा रेडिकल” है। अर्थ और विधि संबंधी विषयों पर उनका गहन अध्ययन था। इस संबंध में उनका चिंतन दो पुस्तकों के रूप में सामने आया, जो उन्हें सहज ही एक अर्थशास्त्री के रूप में मान्यता प्राप्त करा देता है।

Atal Bihari Vajpayee on Babasaheb Ambedkar

यह धारणा भ्रामक है कि डॉ० बाबासाहेब आंबेडकर स्वराज्य की प्राप्ति के बारे में उतने उत्सुक नहीं थे जितने दलितों के उद्धार के बारे में। वस्तुस्थिति यह है कि वे सब के लिए स्वराज्य चाहते थे। स्वराज्य संपूर्ण हो, सब के लिए हो, वह मुट्ठीभर हाथों में केन्द्रित न हो, यह उनकी इच्छा थी। उन्हें यह भी लगता था कि जब तक दलित समाज जागृत और संगठित नहीं होता और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने को तैयार नहीं होता तब तक स्वराज्य, यदि मिल भी गया तो, वह शोषकों तक सीमित रह जाएगा। एक बार उन्होंने कहा था कि यद्यपि हमारे यहां सामाजिक अन्याय है, किंतु वह हमारा आंतरिक प्रश्न है, हम उसका हल निकालेंगे, किंतु अंग्रेजों को यह कहने का नैतिक अधिकार नहीं है कि जब तक हिंदू समाज में सामाजिक अन्याय है तक तक हम आपको स्वराज्य कैसे दे सकते हैं। स्पष्टतः डॉ० आंबेडकर दलितों के हितों की रक्षा के लिए किसी भी सीमा तक जाने के लिए तैयार होते हुए भी, अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति का कभी मोहरा नहीं बने।

डॉ० आंबेडकर एक महान राजनीतिज्ञ थे किंतु उनकी राजनीति सिद्धान्तों से जुड़ी थी। अस्पृश्यता को वे अभिशाप मानते थे और उनके उन्मूलन के लिए उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया, किंतु उनका संघर्ष सदैव शांतिपूर्ण रहा। कतिपय सवर्णों द्वारा जब महाड़ के सत्याग्रह में कुछ भड़कानेवाले कार्य हुए तब भी हॉ० आंबेडकर ने अपने अनुयायियों को संयम से काम लेने के लिए तैयार किया और उसमें उन्हें सफलता भी मिली। उन्हें अस्पृश्य शब्द स्वीकार नहीं था, किंतु वे गांधी जी द्वारा दिए हरिजन शब्द को भी पसन्द नहीं करते थे। उनका कहना था कि हरिजन शब्द में उपकार करने की भावना झलकती है जो उनके द्वारा दी गई स्वाभिमान, स्वावलंबन तथा आत्मोद्वार की त्रिसूत्री के विरुद्ध थी। वे ब्राह्मणों के विरुद्ध नहीं थे, ब्राह्मणवाद के विरुद्ध थे।

स्वतंत्र भारत के संविधान के शिल्पकार के रूप में डॉ० आंबेडकर के योगदान को राजनीति और विधिशास्त्र के विद्यार्थी सदैव ही बड़े गौरव के साथ स्मरण करेंगे। संविधान स्वतंत्र भारत की आधुनिक स्मृति है। इस दृष्टि से डॉ० आंबेडकर को आधुनिक मनु कहा जा सकता है। भारत में समय समय पर स्मृतियां बनती और बदलती रही है। हिन्दू समाज में युग के अनुकूल अपने को परिवर्तित करने की असीम क्षमता है। डॉ० आंबेडकर उस क्षमता के पुंजीभूत प्रतीक थे। लोकतंत्र में उनकी अटूट निष्ठा संविधान परिषद् में उनके भाषणों से पूरी तरह प्रकट होती है। लोकतंत्र की मान्यताओं और उसकी परम्पराओं के उल्लंघन से किस तरह के संकट उत्पन्न होंगे, उन्होंने इस बारे में स्पष्ट चेतावनियां दी थीं। उन चेतावनियों को पढ़कर आज ऐसा लगता है कि डॉ० आंबेडकर भविष्य को भेदकर दूरगामी काल को देखने की अपूर्व क्षमता रखते थे।

साम्यवाद की विचारधारा और मुस्लिम समाज की मानसिकता के संबंध में डॉ० बाबासाहेब आंबेडकर का विश्लेषण बड़ा सटीक और युक्तिसंगत है। उन्होंने साम्यवाद के दर्शन को अमान्य कर दिया था। मुस्लिम समाज में व्याप्त कट्टरता भी उन्हें पसन्द नहीं थी। वे सच्चे लोकतंत्रवादी और सुधारवादी थे। अन्याय और अधिनायकवाद पर आधारित उन्हें कोई व्यवस्था मान्य नहीं थी। तिब्बत पर चीन की सार्वप्रभुता स्वीकार करने की नीति पर सरकार से उनका तीव्र मतभेद था। वे भारत सहित दक्षिण पूर्व एशिया के बौद्ध धर्म प्रभावित देशों को मिला कर एक सांस्कृतिक राष्ट्र मंडल बनाने के पक्ष में थे। वे समाज में धर्म के महत्व को स्वीकार करते थे। उन्हें भारतीयता और भारतीय संस्कृति से गहरा प्रेम था।

जीवन के संध्या काल में जब डॉ० बाबासाहेब आंबेडकर ने नई उपासना पद्धति अपनाने का निर्णय किया तो उनकी दृष्टि बौद्ध धर्म पर टिकी। वे भगवान बुद्ध की करुणा के संदेश से बहुत प्रभावित हुए थे। आज हमारे समाज की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह करुणाविहीन होता जा रहा है। न व्यक्ति के अन्तःकरण में करुणा की धारा है और न समाज के आचार-व्यवहार में ही कहीं करुणा का परिचय मिलता है। बौद्ध धर्म स्वीकार करते हुए डॉ० आंबेडकर ने जो भाषण दिया वह उनके भारत-प्रेम को पूरी तरह उजागर करता है। उन्होंने कहा-

मैंने एक बार अस्पृश्यता के प्रश्न पर गांधी जी से चर्चा करते हुए कहा था कि अस्पृश्यता के सवाल पर भले ही मेरे साथ आपके मतभेद हों, जब समय आएगा तो मैं देश को कम से कम क्षति पहुंचाने वाला मार्ग स्वीकार करूंगा। आज बौद्ध धर्म स्वीकार करके मैं देश का अधिक से अधिक हित साधन कर रहा हूँ। कारण यह है कि बौद्ध धर्म भारतीय संस्कृति का ही एक भाग है। इस देश की संस्कृति, इतिहास तथा परम्परा को कोई आघात न लगे, यह सावधानी मैंने बरती है।

आज जब सारा देश डॉ० बाबासाहेब आंबेडकर की जन्म शताब्दी का समारोह बड़े उत्साह से मना रहा है, तब उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से प्रेरणा लेकर हम यह संकल्प करें कि हम स्वतंत्रता को अमर बनाएंगे, लोकतंत्र को अक्षुण्ण रखेंगे और आर्थिक शोषण तथा सामाजिक अन्याय को समाप्त कर ऐसे भारत की रचना करेंगे जो डॉ० आंबेडकर के सपने के अनुरूप हो।


 2003 

Atal Bihari Vajpayee on Babasaheb Ambedkar
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर पर अटल बिहारी वाजपेयी के विचार

24 अक्टूबर, 2003 को दिल्ली में डॉ० आंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक के लिए भूमि का अधिग्रहण किया गया। डॉ० आंबेडकर इसी स्थान पर रहे थे और उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली थी। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा है कि…

डॉ० बाबासाहेब आंबेडकर एक महान व्यक्तित्व थे और जितना अधिक कोई उनके बारे में पढ़ता है उतना ही अधिक उसे उनकी महानता का एहसास होता है। डॉ. अंबेडकर ने बहुत कठिन समय में सामाजिक परिवर्तन का बीड़ा उठाया और हमें नई राह दिखाई। सन्दर्भ 


इस लेख पर आपके क्या विचार हैं कृपया हमें बताएं। यह लेख “बाबासाहेब आंबेडकर पर भारतीय प्रधानमंत्रियों के विचारों” की पहली कड़ी है। कृपया डॉ. आंबेडकर जी के बारे में अटल जी के अन्य विचारों को भी हमारे साथ साझा करें, जो इस लेख में छूट गए हैं। धन्यवाद।


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