आज डॉ. बाबासाहब आंबेडकर की सैकड़ों-हजारों जीवनियाँ (Biographies of Ambedkar) उपलब्ध हैं। लेकिन बाबासाहब के महापरिनिर्वाण यानि निधन से पहले उनकी 5 जीवनियाँ प्रकाशित हुईं, जिन्हें हम डॉ. आंबेडकर की आद्य जीवनियाँ कह सकते हैं। इस लेख में हम इन आद्य-जीवनियों के बारे में जानने जा रहे हैं। – डॉ. आंबेडकर की जीवनियाँ

डॉ. बाबासाहब आंबेडकर स्वयं एक महान लेखक थे और उन्होंने 32 पुस्तकें लिखीं। इसके अलावा उनकी अन्य रचनाएँ भी बहुत बड़ी हैं।
शायद डॉ. आंबेडकर पर एक लाख से अधिक पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं। ये किताबें अलग-अलग भाषाओं और अलग-अलग देशों के लेखकों द्वारा लिखी गई हैं। यदि हम बाबासाहब की छोटी-बड़ी सभी जीवनियों पर विचार करें तो उनकी संख्या हजारों में होगी। लेकिन यदि सर्वोत्तम जीवनियों पर विचार किया जाए तो वे सैकड़ों होंगी।
डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर की पांच जीवनियाँ उनके जीवनकाल में यानी 1956 से पहले प्रकाशित हुईं, जिनमें से दो अत्यधिक विश्वसनीय मानी जाती हैं। आइए जानें डॉ. आंबेडकर की आद्य जीवनियों (Early Biographies of BR Ambedkar) के बारे में…
डॉ. बाबासाहब आंबेडकर की आद्य जीवनियाँ
जीवन चरित्र : डॉ. बी. आर. आंबेडकर, एस्क्वायर (1940)
‘जीवन चरित्र : डॉ. बी. आर. आंबेडकर, एस्क्वायर’ डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की पहली जीवनी है, जिसे यू. एम. सोलंकी ने लिखा था। यह जीवनी गुजराती भाषा में लिखी गई थी और बाबासाहेब के जीवनकाल में ही प्रकाशित हुई थी। यह पुस्तक 28 अगस्त 1940 को प्रकाशित हुई और केवल एक किताब नहीं रही, बल्कि एक ऐतिहासिक दस्तावेज बन गई।
इस जीवनी में 1940 तक का बाबासाहेब का जीवन, उनका संघर्ष, और उनका कार्य बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। उस समय समाज में बाबासाहेब के कार्य को कैसे देखा जा रहा था, और लोगों की भावनाएँ क्या थीं – यह सब भी इसमें उल्लेख किया गया है।
गुजरात के शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के नेता कर्शनदास लेऊवा को लगा कि बाबासाहेब की जीवनी लिखी जानी चाहिए। लेकिन प्रश्न था – लिखेगा कौन? उस समय दलित समाज में शिक्षित लोग बहुत कम थे। फिर भी कर्शनदास जी अपने विचार पर अडिग रहे। अंततः उन्हें उपयुक्त लेखक मिले – यू. एम. सोलंकी।
इस पुस्तक की भूमिका में कर्शनदास लेऊवा ने विस्तार से बताया है कि यह जीवनी क्यों लिखी गई और इसके पीछे उनका उद्देश्य क्या था। इस जीवनी में लेखक यू. एम. सोलंकी, विचार देने वाले कर्शनदास लेऊवा और आर्थिक सहयोग करने वाले कांजीभाई दवे की तस्वीरें भी प्रकाशित की गई हैं।
यह जीवनी 22 अगस्त 1940 को प्रकाशित हुई थी। पुस्तक के पहले ही पृष्ठ पर बड़े अक्षरों में नाम छपा था –
“जीवन चरित्र : डॉ. बी. आर. आंबेडकर, एस्क्वायर – M.A., Ph.D., Barrister-at-Law, M.L.C., D.Sc.”
इस पुस्तक को ‘महागुजरात दलित नवयुवक मंडळ, दरियापुर, अहमदाबाद’ ने प्रकाशित किया और इसे ‘मन्सूर प्रिंटिंग प्रेस, ढलगरवाड़, अहमदाबाद’ में छापा गया।
पुस्तक की कीमत? वह थी – “अमूल्य”! यानी, इसकी कोई निश्चित कीमत नहीं रखी गई थी। मूल्य की जगह लिखा गया था – “मूल्य : अमूल्य”।
यह ऐतिहासिक जीवनी साल 2023 में दोबारा प्रकाशित की गई। इस बार डॉ. अमित प्रियदर्शी ज्योतिकर (डॉ. प्रियदर्शी जी. ज्योतिकर के पुत्र) ने इस पुस्तक को द्विभाषिक रूप में प्रकाशित किया। उन्होंने मूल गुजराती पृष्ठ जस का तस रखा, और साथ वाले पृष्ठ पर उसका अंग्रेज़ी अनुवाद किया है।
इस पुनर्प्रकाशन में महाराष्ट्र के प्रसिद्ध आंबेडकरवादी लेखक विजय सुरवाडे का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। (बीबीसी न्यूज़ देखें)
डॉ. आंबेडकर (1946)
बाबासाहेब की पहली जीवनी हिंदी में रामचन्द्र बनौधा ने लिखी, जबकि दूसरी जीवनी मराठी में 25 वर्षीय तानाजी बालाजी खरावतेकर ने लिखी। कोंकण में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद तानाजी खरावतेकर मुंबई आ गए। 1942-44 तक वे इंटर साइंस में थे।
बाद में, भारत से पाकिस्तान के विभाजन से पहले, कोंकण के लेखक तानाजी खरावतेकर का परिवार बंदरगाह शहर कराची (अब पाकिस्तान) में व्यापार और व्यवसाय के माध्यम से आजीविका कमाने के लिए कराची चला गया।
उस समय, तानाजी खरावतेकर ने डॉ. बाबासाहब आंबेडकर को एक भावनात्मक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने लिखा था,
“प्रिय बाबासाहब, मैं कोंकण से हूं और शिक्षा के लिए मुंबई आया हूं। मैं इंटर साइंस की दूसरी कक्षा में पढ़ रहा हूं और अब सेना में भर्ती चल रही है। अगर मैं सेना में नौकरी करने जाऊंगा तो मेरी आर्थिक समस्याएं जल्द ही हल हो जाएंगी और मुझे नहीं पता कि ऐसी भर्ती दोबारा कब होगी। मैं असमंजस में हूं, क्या मुझे नौकरी करनी चाहिए या पढ़ाई करनी चाहिए?”
ऐसा यह पन्द्रह पंक्तियों का पत्र था। इस पत्र, जिसकी कोई पहचान नहीं थी, का भी बाबासाहब आंबेडकर ने संज्ञान लिया और पत्र का उत्तर देते हुए बाबासाहब ने कहा,
“मुझे 21 तारीख को आपका पत्र मिला जिसमें आपने अपने करियर के बारे में मुझसे सलाह मांगी थी। मेरी सलाह है कि आपको अपनी पढ़ाई जारी रखनी चाहिए और जब तक आप अपनी शैक्षिक महत्वाकांक्षाएं पूरी नहीं कर लेते, तब तक नौकरी के बारे में न सोचें…।”
तानाजी ने बाबासाहब की यह सलाह मान ली। उन्होंने बीए की पढ़ाई शुरू की और 1945 में इतिहास में बीए पास किया। डॉ. आंबेडकर के बाद वह कोंकण से पहले स्नातक थे। वे स्वयं तत्कालीन अछूत (दलित) समुदाय से थे।
तानाजी खरावतेकर ने पढ़ाई के दौरान डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की एक लघु जीवनी लिखी। इधर-उधर से धन इकट्ठा करके उन्होंने 1946 में ‘डॉक्टर आंबेडकर‘ नामक पुस्तक प्रकाशित की। यह जीवनी कराची (पाकिस्तान) में प्रकाशित हुई थी।
लेकिन किताब के प्रकाशन के पांच महीने बाद 26 साल की उम्र में मुंबई के केईएम अस्पताल में तानाजी खरावतेकर की मृत्यु हो गई।
‘डॉक्टर आंबेडकर’ पुस्तक की मूल प्रति, जो अब दुर्लभ है, को मुंबई-कराची फ्रेंडशिप फोरम प्लेटफॉर्म के तहत ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन द्वारा पुनर्मुद्रित किया गया है। इस पुस्तक को 2010 में प्रोफेसर रमाकांत यादव और उनके सहयोगी रमेश हरलकर द्वारा पुनः प्रकाशित किया गया था।
इसके बाद इस किताब को नए रूप में ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सुधींद्र कुलकर्णी ने प्रकाशित किया। इस जीवनी को डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की 125वीं जयंती के अवसर पर मुंबई में बुद्धिजीवी डॉ. रावसाहेब कसबे द्वारा प्रकाशित किया गया था।
डॉ. आंबेडकर का जीवन संघर्ष (1947)
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की दूसरी जीवनी हिंदी में लिखी गई थी और उसका नाम ‘डॉ. आंबेडकर का जीवन संघर्ष‘ था। बाबासाहब की यह जीवनी रामचंद्र बनौधा (Ramchandra Banaudha) ने लिखी थी।
यह पुस्तक 1947 में प्रकाशित हुई थी, जब बाबासाहब जीवित थे। इस पुस्तक की प्रस्तावना जोगेन्द्रनाथ मंडल ने लिखी, जिन्हें ‘पाकिस्तान का आंबेडकर’ कहा जाता है।
लेखक रामचन्द्र बनौधा एक एसपी के पद से सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी थे और बाबासाहब आंबेडकर के विचारों से बहुत प्रभावित थे। बनौधा अमराठी थे, लेकिन दलित समुदाय से थे।
एसपी पद से रिटायर होने के बाद रामचन्द्र बनौधा ने डॉ. आंबेडकर से संपर्क करना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने पत्र-व्यवहार शुरू कर दिया। इस पत्र-व्यवहार के बाद अंततः बाबासाहब ने उन्हें ट्रेन में मिलने का समय दिया।
योजना के अनुसार, दोनों मिले और बाबासाहेब ने उन 50 लिखित प्रश्नों के उत्तर दिए जो बनौधा उस बैठक के लिए अपने साथ लाए थे। इन्हीं 50 सवालों के जवाब से तैयार हुई थी डॉ. आंबेडकर की पहली हिन्दी जीवनी।
‘डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर‘ चरित्रखंड 1 (1952)
चांगदेव भवनराव खैरमोडे (1904 से 1971) एक मराठी जीवनीकार, लेखक, अनुवादक और कवि थे। उन्होंने डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के सानिध्य में रहते हुए “डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर” नाम से 9000 पृष्ठों के 15 खंड लिखे, जिसमें उनके जीवन क्रम, जीवनी और लेखन का विस्तृत रिकॉर्ड रखा गया। खैरमोड़े द्वारा लिखी गई आंबेडकर की जीवनी अत्यधिक विश्वसनीय मानी जाती है।
1929 में चांगदेव खैरमोडे ने बी.ए. किया। आगे उन्होंने एमए और एलएलबी की पढ़ाई की, लेकिन सचिवालय में नौकरी मिल जाने के कारण वे परीक्षा में शामिल नहीं हुए। खैरमोड़े ने बाबासाहब के लेखों ‘शूद्र कौन थे?’, ‘हिन्दू महिलाओं का उत्थान और पतन’ का भी अनुवाद किया।
जीवनीकार खैरमोड़े की सबसे महान और महत्वपूर्ण कृति डॉ. आंबेडकर का ‘बृहदचरित्र’ है। इसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की। नौकरी के सिलसिले में मुंबई आने के बाद खैरमोड़े को डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के सहवास मिला। इसने उनके वैचारिक गठन और व्यक्तिगत विकास को भी पोषित किया।
चांगदेव खैरमोडे द्वारा लिखित जीवनी ‘डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर‘ का पहला खंड बाबासाहब के जीवनकाल के दौरान 1952 में प्रकाशित हुआ था। अंतिम चार खंड 1971 से पहले यानी चांगदेव खैरमोडे के जीवनकाल में प्रकाशित हुए थे।
1952 से 1968 तक पांच खंड प्रकाशित हुए और 18 नवंबर 1971 को उनकी मृत्यु हो गई जबकि छठा खंड प्रिंट में था। शेष 10 खंडों के प्रकाशन का कार्य उनकी पत्नी द्वारकाबाई खैरमोडे ने पूरा किया और इस खंड का संचालन महाराष्ट्र राज्य साहित्य संस्कृति मंडल द्वारा किया गया।
खैरमोड़े ने विशाल सामग्री एकत्रित कर बाबासाहब की जीवनी के अठारह खंड प्रकाशित करने का संकल्प लिया था। उनमें से खंड 6, 7, 8 में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर और उनके कार्यों के बारे में बहुत ख़ास और महत्वपूर्ण जानकारी है, जबकि अप्रकाशित खंड 9 से 15 में बाबासाहब के महान व्यक्तित्व और उनके महान कार्यों की विस्तृत समीक्षा है।
डॉ. बाबासाहब द्वारा अछूतों की मुक्ति के लिए किये गये राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष, इसके लिए किये गये व्यापक आंदोलन को दुनिया के सामने प्रस्तुत करने के लिए खैरमोड़े ने 9000 पन्नों की इस जीवनी को एक दस्तावेज के रूप में लिखने का महान कार्य किया है।
डॉ. आंबेडकर : लाइफ एंड मिशन (1954)
धनंजय कीर ने 1954 में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर की अंग्रेजी जीवनी ‘डॉ. आंबेडकर: लाइफ एंड मिशन‘ लिखी। यह आंबेडकर की चौथी और अंग्रेजी में पहली जीवनी है। धनंजय कीर द्वारा लिखित जीवनी सबसे विश्वसनीय आंबेडकर जीवनिओं में से एक मानी जाती है।
धनंजय कीर ने विनायक दामोदर सावरकर की पहली जीवनी लिखी जो 1950 में प्रकाशित हुई। इस जीवनी को सावरकरवादियों के बीच महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
बाद में उन्होंने बाबासाहब की प्रसिद्ध जीवनी लिखी। इस जीवनी को लिखते समय कीर ने बाबासाहब से भेंट की और उनका साक्षात्कार लिया। धनंजय कीर के अनुसार, जब उन्होंने यह जीवनी पूरी की तो उसकी एक प्रति डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के पास भेजी और उसे पढ़कर बाबासाहब ने उसकी प्रशंसा की। इस पुस्तक का पहला संस्करण देखें
बाद में 1966 में, लेखक धनंजय कीर ने डॉ. आंबेडकर की एक मराठी जीवनी “डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर” भी लिखी। यह पुस्तक पहली बार आंबेडकर की जयंती पर 14 अप्रैल 1966 को पॉपुलर पब्लिकेशन, मुंबई द्वारा प्रकाशित की गई थी। उसके बाद इस पुस्तक के कई संस्करण प्रकाशित हुए।
यह डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की एक उल्लेखनीय जीवनी है। पुस्तक में डॉ. आंबेडकर के लेखों की सूची, डॉ. आंबेडकर पर लेखों की सूची और डॉ. आंबेडकर की संक्षिप्त जीवनी भी शामिल है। इस पुस्तक का अंग्रेजी, हिंदी, जापानी और कई अन्य भाषाओं में अनुवाद किया गया है।
डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के महापरिनिर्वाण से पहले प्रकाशित इन चार आद्य-जीवनियों में से तीन के लेखक दलित (अछूत) थे, धनंजय कीर एकमात्र गैर-दलित थे। धनंजय कीर सावरकरवादी थे जबकि बाकी तीन आंबेडकरवादी थे। साथ ही, रामचन्द्र बनौधा को छोड़कर बाकी तीनों लेखक मराठी थे।
इन चार जीवनी पुस्तकों में से दो मराठी में, एक हिंदी में और एक अंग्रेजी में लिखी गई है। चार पुस्तकों में से तीन के शीर्षक “डॉ. आंबेडकर” है, जबकि एक पुस्तक का नाम “डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर” है। खैरमोडे और कीर दोनों की आंबेडकर जीवनियाँ आज भी गुणवत्तापूर्ण और विश्वसनीय मानी जाती हैं।
डॉ. आंबेडकर की जीवनियाँ
इसके बाद कुछ दशकों तक डॉ. बाबासाहब आंबेडकर पर पुस्तकों के लिए चंद प्रयास और हुए लेकिन इनका प्रसार दलित बुद्धिजीवियों तक ही सीमित था। 1970 में डॉ. आंबेडकर के योगदान का महत्व बढ़ा और महाराष्ट्र सरकार ने डॉ. आंबेडकर के अप्रकाशित लेखन और भाषणों को मूल अंग्रेजी में छापने का निर्णय किया।
1991 में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर की 100वीं वर्षगांठ के अवसर पर केंद्र सरकार ने डॉ. आंबेडकर के उस संकलन को हिंदी सहित 13 भाषाओं में अनुवाद करने का फैसला किया।
सार्वजनिक या निजी किसी भी प्रकाशन ने इन्हें प्रकाशित नहीं किया। यहां तक कि केंद्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग ने भी इस संकलन को छापने में रुचि नहीं दिखाई।
सामाजिक न्याय मंत्रालय ने इसको छापने का जिम्मा लिया और 1990 के मध्य में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की लेखन और भाषणों (Dr. Babasaheb Ambedkar : Writings And Speeches) का पहला संकलन प्रकाशित हुआ।
प्रकाशित संकलन को पुस्तकालय या किताबों की दुकान में स्थान नहीं मिला। लाइब्रेरियन और पुस्तक विक्रेता किताबों को ऐसी जगह जमाते थे जहां उन्हें कोई नहीं देख सकता था।
इस तरह पाठकों और बिक्री के ऑडिट में यह संदेश मिलता है कि इन किताबों को कोई नहीं पढ़ रहा है और इस आधार पर प्रकाशित खंडों को वापस मंगवा लिया जाता और फिर प्रकाशित नहीं किया जाता।
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