डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का शिक्षा में योगदान

डॉ. बाबासाहब आंबेडकर भारत के एक प्रमुख शैक्षिक विचारक थे। उनके शैक्षिक विचार आज भी प्रासंगिक एवं महत्वपूर्ण हैं। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान महत्वपूर्ण है। आज हम जानने जा रहे हैं – डॉ आंबेडकर का शैक्षिक योगदान।

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डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का शैक्षिक योगदान

Dr. Ambedkar’s contribution to education

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का शैक्षणिक जीवन भी बहुत भव्य और लोगों के लिए प्रेरक है। शिक्षा के लिए उनकी कड़ी मेहनत, उनके द्वारा अर्जित की गई उच्चतम शैक्षणिक डिग्रीयां और शिक्षा के बल पर अर्जित की गई असामान्य और कुशाग्र बुद्धि यह आज भी सभी के लिए एक प्रेरणा है।

डॉ आंबेडकर ने शिक्षा के बारे में क्या कहा? डॉ. आंबेडकर उच्च शिक्षित थे, तथा वे 20वीं सदी के दुनिया के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे राजनेता थे। उन्होंने कहा था कि “शिक्षा एक बाघिन का दूध है, और जो कोई भी इसे पीएगा वह बाघ की तरह गुर्रायेगा जरूर।”

प्राचीन हिंदू समाज के जाति नियमों के अनुसार, निचली जातियाँ शिक्षा प्राप्त करने की हकदार नहीं थीं, जबकि केवल उच्च जातियाँ ही शिक्षा की हकदार थीं। इसलिए निचली जातियों की स्थिति लगभग गुलाम जैसी थी।

शिक्षा से निचली जातियों की स्थिति में सुधार होगा, यह सोचकर आंबेडकर ने शैक्षिक क्षेत्र में कार्य किया।

 

डॉ. आंबेडकर के शैक्षिक योगदान जानने से पहले, आपको उनके संबंध में कुछ महत्वपूर्ण शैक्षिक बातों को जानना चाहिए –

– डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को “भारत के अब तक के सबसे बुद्धिमान इंसान” के रूप में जाना जाता है।

– डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर अत्यधिक उच्च शिक्षित और अपने समय के ‘सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे व्यक्ति’ थे। The most educated person – बाबासाहेब ने लंदन, भारत, अमेरिका से शिक्षा प्राप्त की और कई उच्च डिग्रियां प्राप्त कीं।

– बाबासाहेब आंबेडकर ने प्रोफेसर के रूप में भी काम किया है।

– डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को पढ़ने का बहुत शौक था, वे प्रतिदिन अठारह घंटे अध्ययन करते थे। लंदन में तो उन्होंने प्रतिदिन 21 घंटे पढ़ाई की थी।

– उनकी शैक्षिक योग्यता, विद्वता और प्रतिभा इतनी व्यापक और शानदार है कि उन्हें ‘दुनिया के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति’ के साथ-साथ ‘ज्ञान के प्रतीक’ (सिम्बॉल ऑफ नॉलेज) के रूप में भी जाना जाता है।

– बाबासाहेब अछूतों और महिलाओं के साथ साथ सभी भारतीयों की शिक्षा के लिए प्रयास करते रहे।

– डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने वंचित एवं दलित समुदाय की शिक्षा के लिए पीपुल्स एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की।

 

डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का शैक्षिक योगदान

बाबासाहब आंंबेडकर ने शिक्षा के महत्व को जानते हुए उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने पहले तो समाज में शैक्षिक जागरूकता फैलाई, लोगों को शिक्षा का महत्व समझाया और उन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रेरित किया। बाबासाहब ने कई शैक्षिक संस्थाएं स्थापन की तथा कई कॉलेज भी निर्माण किए।

 

शैक्षिक जागरूकता

हजारों वर्षों तक शिक्षा से वंचित रहे निचली जातियों में अज्ञानता और निरक्षरता थी। इस वजह से ऊंची जातियों के लोग बिना खुद काम किए निचली जातियों के लोगों को उनका काम करने के लिए मजबूर करते थे।

बाबासाहब ने निचली जातियों के लोगों को यह एहसास कराया कि उनकी दयनीय स्थिति शिक्षा की कमी के कारण है। उन्होंने निचली जातियों के लोगों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित किया।

इन बच्चों को छात्रवृत्ति, गणवेश, भोजन और आश्रय जैसी सुविधाएं प्रदान करने का प्रयास किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को “शिका, संघटित व्हा आणि संघर्ष करा” यानी “पढ़ो, संगठित रहो और संघर्ष करो” का संदेश दिया।

 

बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना

निचली जाति के लोगों में शिक्षा का प्रसार करने और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार करने के लिए डॉ. आंबेडकर ने 20 जुलाई 1924 को बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की। बहिष्कृत हितकारणी सभा का अर्थ होता है ‘बहिष्कृतों का हित करने वाली सभा/ संस्था’।

इस संस्था की ओर से सोलापुर में 4 जनवरी 1925 में एक छात्रावास (हॉस्टल) शुरू किया गया था और दलित और गरीब छात्रों को आवास, भोजन, कपड़े और शैक्षिक सामग्री प्रदान की गई थी।

बाबासाहेब ने इस छात्रावास को सोलापुर नगर पालिका द्वारा ₹ 40000/- रुपये का अनुदान दिलाया। इस संस्था ने ‘सरस्वती विलास’ नामक एक पत्रिका और एक मुफ्त पुस्तकालय भी शुरू किया।

 

दलित शिक्षण संस्था की स्थापना

14 जून 1928 को डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने दलित शिक्षण संस्था की स्थापना की। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य दलितों की माध्यमिक शिक्षा को सुगम बनाना था।

बाबासाहेब ने मुंबई सरकार से माध्यमिक शिक्षा की जिम्मेदारी को पूरा करने में अक्षम दलित छात्रों को छात्रावास की सुविधा प्रदान करने के लिए इस संस्था की मदद करने की अपील की थी।

इसलिए बॉम्बे के गवर्नर ने 8 अक्टूबर, 1928 को माध्यमिक विद्यालय के छात्रों के लिए 5 छात्रावास स्वीकृत किए। इसके अलावा, गवर्नर ने हर महीने छात्रावासों पर व्यय के लिए भी 9,000/- रुपये स्वीकृत किए गए थे।

जब यह राशि खर्चे से कम होने लगी तो डॉ. आंबेडकर को मुस्लिम और पारसी समुदायों के धर्मार्थ संगठनों और कुछ अन्य दानदाताओं से वित्तीय सहायता मिली।

 

पीपल्स एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना

अछूतों सहित निम्न मध्यम वर्ग को उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए डॉ बाबासाहब आंबेडकर ने 8 जुलाई, 1945 को पीपल्स एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की।

इस संस्था के माध्यम से बाबासाहब आंंबेडकर ने निम्नलिखित कॉलेज सभी समुदायों के लिए शुरू किए।

  • 1946 में मुंबई में सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड साइंस,
  • 1950 में औरंगाबाद में मिलिंद कॉलेज,
  • 1953 में मुंबई में सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स
  • 1956 में मुंबई में सिद्धार्थ लॉ कॉलेज

वर्तमान में, पीपल्स एजुकेशन सोसाइटी के देश भर में 30 से अधिक कॉलेज हैं।

इस प्रकार डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के शैक्षणिक योगदान ने न केवल वंचितों और शोषितों को बल्कि सभी समुदायों के छात्रों को लाभान्वित किया है। 


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