Last Updated on 4 October 2025 by Sandesh Hiwale
क्या डॉ. बाबासाहब आंबेडकर संस्कृत भाषा जानते थे? या बाबासाहेब आंबेडकर ने मनुस्मृति को पूरा पढ़ा था? कुछ लोगों के ऐसे सवाल होते हैं। क्या इन दावों में सच में कोई सच्चाई है कि यह केवल एक भ्रम है? आज हम इसका जवाब खोजने की कोशिश करेंगे। – ambedkar sanskrit

ambedkar sanskrit – क्या डॉ. बाबासाहब आंबेडकर संस्कृत भाषा जानते थे?
Did Dr. Ambedkar know Sanskrit language?
जिन लोगों ने डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के बारे में कुछ पढ़ा है, वे निश्चित रूप से इन दो परस्पर जुड़े सवालों से हैरान होंगे। इससे आगे, जिन्होंने बाबासाहब को थोड़ा बेहतर ढंग से पढ़ा और समझा है, उन्हें ये प्रश्न निरर्थक भी लग सकते हैं।
लेकिन फिर भी डॉ. बाबासाहब आंबेडकर संस्कृत भाषा जानते थे या नहीं? यह एक महत्वपूर्ण सवाल है। क्योंकि यह सवाल कुछ लोगों ने उठाया है और इसके बारे में Quora पर भी सवाल पूछे गए हैं।
बेशक, ऐसे सवाल पूछने के अपने कारण हैं। आजकल यह जानकारी फैलाई जा रही है कि बाबासाहब संस्कृत भाषा नहीं जानते थे या उन्हें संस्कृत का ज्ञान नहीं था। खास बात यह है कि इस तरह की जानकारी फैलाने वाले लोग अधिकांश बार डॉ. आंबेडकर की एक किताब को ही सबूत के तौर पर पेश कर रहे हैं। डॉ आंबेडकर को संस्कृत को ज्ञान नहीं था यह दावा आरएसएस चीफ मोहन भागवत तथा रामभद्राचार्य जैसे विख्यात व्यक्तियों ने भी किया है! जानते है इसकी सच्चाई।
दरअसल, डॉ. बाबासाहब आंबेडकर कई भाषाओं के जानकार थे। लेकिन क्या उनमें संस्कृत भाषा थी? क्या बाबासाहब ने कभी स्वयं के संस्कृत जानने के बारे में और संस्कृत के अपने ज्ञान के बारे में भी लिखा है?
क्या डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर ने संस्कृत का ज्ञान नहीं था? कुछ लोग उनकी पुस्तक “हू वर द शूद्रास” से एक अंश का हवाला देकर दावा करते हैं कि वे संस्कृत नहीं जानते थे। आलोचना की वैधता की जांच करने से पहले, आइए पहले उस अंश पर नजर डालें, जो इस प्रकार है:
“While it may be admitted that a study of the origin of the Shudras is welcome, some may question my competence to handle the theme…If the warning is for the reason that I cannot claim mastery over the Sanskrit language, I admit this deficiency. But I do not see why it should disqualify me altogether from operating in this field. There is very little of literature in the Sanskrit language which is not available in English. The want of knowledge of Sanskrit need not therefore be a bar to my handling a theme such as the present. For I venture to say that a study of the relevant literature, albeit in English translations, for 15 years ought to be enough to invest even a person endowed with such moderate intelligence like myself, with a sufficient degree of competence for the task. As to the exact measure of my competence to speak on the subject, this book will furnish the best testimony.”
हिंदी अनुवाद :
“हालांकि यह स्वीकार किया जा सकता है कि शूद्रों की उत्पत्ति का अध्ययन स्वागतयोग्य है, कुछ लोग विषय को संभालने की मेरी योग्यता पर सवाल उठा सकते हैं… यदि चेतावनी इस कारण से है कि मैं संस्कृत भाषा पर महारत का दावा नहीं कर सकता, मैं इस कमी को स्वीकार करता हूं। लेकिन मुझे नहीं लगता कि इससे मुझे इस क्षेत्र में काम करने के लिए पूरी तरह अयोग्य ठहराया जाना चाहिए। संस्कृत भाषा में बहुत कम साहित्य ऐसा है जो अंग्रेजी में उपलब्ध नहीं है। संस्कृत के ज्ञान की कमी इसलिए इस विषय को संभालने में बाधा नहीं बननी चाहिए। क्योंकि मैं कहता हूं कि प्रासंगिक साहित्य का अध्ययन, भले ही अंग्रेजी अनुवादों में, 15 वर्षों तक, यहां तक कि मेरे जैसे मध्यम बुद्धि वाले व्यक्ति को भी कार्य के लिए पर्याप्त योग्यता प्रदान करने के लिए पर्याप्त होना चाहिए। विषय पर बोलने की मेरी योग्यता की सटीक माप के रूप में, यह पुस्तक सबसे अच्छा प्रमाण देगी।”
उपरोक्त अंश में ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण बात शब्द “महारत” (mastery) है। डॉ. आंबेडकर ने यह नहीं कहा कि वे संस्कृत नहीं जानते थे, बल्कि वे कह रहे थे कि वे इस पर महारत का दावा नहीं कर सकते। स्पष्ट रूप से कहें तो, बाबासाहेब इस दावे में विनम्रता दिखा रहे थे, क्योंकि उन्हें संस्कृत का गहन ज्ञान था।
इस संदर्भ में, अपनी किताब Dr. Bhimrao Ambedkar : His Life and Work (1988) में पद्मश्री डॉ. एम. एल. शहारे [यूपीएससी के पूर्व अध्यक्ष] के शब्द उद्धरण योग्य हैं। उन्होंने लिखा:
Even the Elphinston High School was not free from the ever-present shadow of untouchability. Although Bhim was deeply interested in learning Sanskrit, he was not allowed to do so as he was an untouchable. It was because of this reason that he was forced, much against his will, to choose Persian. But later, Bhim’s unconquerable will enabled him to become a scholar of high calibre in Sanskrit, the very language, he was forbidden to learn in his school days.
हिंदी अनुवाद :
“यहाँ तक कि एल्फिंस्टन हाई स्कूल भी अस्पृश्यता की हमेशा मौजूद रहने वाली छाया से मुक्त नहीं था। भीम को संस्कृत सीखने में गहरी रुचि थी, लेकिन चूंकि वह एक अस्पृश्य थे, इसलिए उन्हें यह भाषा पढ़ने की अनुमति नहीं दी गई। इसी कारण उन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध फारसी भाषा चुननी पड़ी। लेकिन बाद में, भीम की अडिग इच्छाशक्ति ने उन्हें संस्कृत में उच्च कोटि का विद्वान बना दिया, उसी भाषा में जिसे उन्हें स्कूल के दिनों में सीखने से रोका गया था। [SOURCE]
यह उद्धरण इस तथ्य पर सटीक प्रहार करता है कि डॉ. आंबेडकर संस्कृत के असाधारण विद्वान थे। इससे भी अधिक उल्लेखनीय बात यह है कि रामचंद्र बनौधा, जो डॉ. आंबेडकर के शुरुआती जीवनीकारों में से एक थे, तथा उन्होंने पुस्तक बाबासाहेब की किताब लिखने के लिए उसकी मुलाकात की थी। कभी इस विषय पर एक नई अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। अपनी हिंदी पुस्तक “डॉ. आंबेडकर का जीवन संघर्ष” (1946) में रामचंद्र बनौधा ने उल्लेख किया है कि बाबासाहेब न केवल संस्कृत जानते थे बल्कि उन्होंने बॉन विश्वविद्यालय में छात्रों को कुछ समय के लिए जर्मन भाषा में संस्कृत सिखाया भी!
यह निस्संदेह सिद्ध करता है कि डॉ. आंबेडकर ने न केवल संस्कृत पर महारत हासिल की बल्कि जर्मन भाषा पर भी। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय में फ्रेंच और जर्मन दोनों सीखीं।

ambedkar on sanskrit – अपनी आत्मकथा में डॉ. आंबेडकर कहते हैं कि…
“मी संस्कृत शिकावे अशी वडिलांची फार इच्छा होती. पण त्यांची ही इच्छा सफल झाली नाही कारण आमच्या संस्कृतच्या मास्तरांनी मी अस्पृश्यांना शिकवणार नाही असा हट्ट धरला. त्यामुळे मला पर्शियन भाषेकडे निरुपायाने धाव घेणे भाग पडले. मला संस्कृत भाषेचा अत्यंत अभिमान आहे. आता स्वतःच्या मेहनतीने मी संस्कृत वाचू-समजू शकतो. पण त्या भाषेत अधिक पारंगत व्हावे अशी माझी अंतःकरणात तळमळ आहे.”
हिन्दी अनुवाद —
“मेरे पिता चाहते थे कि मैं संस्कृत सीखूं। लेकिन उनकी इच्छा पूरी नहीं हुई क्योंकि हमारे संस्कृत शिक्षक ने जोर देकर कहा कि मैं अछूतों को संस्कृत नहीं पढ़ाऊंगा। इसलिए मुझे फारसी (पर्शियन) की ओर जाना पड़ा। मुझे संस्कृत पर बहुत गर्व है। अब मैं अपने प्रयासों से संस्कृत को पढ़ और समझ सकता हूं। लेकिन मेरे दिल में उस भाषा में अधिक पारंगत होने की लालसा है।”
महान विचारक दत्तोपंत ठेंगड़ी की पुस्तक ‘सामाजिक क्रांतीची वाटचाल आणि बाबासाहेब’ (सोशल रिवोल्यूशनरी जर्नी एंड बाबासाहेब) के परिशिष्ट में उन्होंने बाबासाहब के संस्कृत ज्ञान के बारे में समकालीन संदर्भ दिए हैं।
इसका एक संदर्भ महाराष्ट्र सरकार के मराठी विश्वकोश में भी मिलता है। आंबेडकर, भीमराव रामजी
डॉ. आंबेडकरांना वाचनाचा अतिशय नाद होता. विद्यार्थीदशेत त्यांना संस्कृतचे अध्ययन करता आले नाही. पुढे ते मुद्दाम चिकाटीने संस्कृत शिकले. ग्रंथांशिवाय आपण जगूच शकणार नाही, असे त्यांना वाटे.
हिन्दी अनुवाद —
डॉ. आंबेडकर को पढ़ने का बडा शौक था। छात्र अवस्था में वे संस्कृत का अध्ययन नहीं कर सके थे। बाद में उन्होंने ज़िद एवं लगन से संस्कृत सीखी। किताबों के बिना मैं रह ही नहीं सकता, ऐसा उन्हें लगता था।
बाबासाहेब 12 से अधिक भाषाएँ जानते थे (कुछ लोग अभी भी ९ भाषाओं पर ही अटके हुए हैं) और उनमें से एक थी संस्कृत!
डॉ. आंबेडकर ने जर्मनी में संस्कृत सीखी थी। क्योंकि उन्हें भारत में संस्कृत को एक विषय के रूप में लेने की अनुमति नहीं थी। संस्कृत को एक पवित्र भाषा माना जाता है। अछूत बालक को शिक्षा देकर ब्राह्मण इस भाषा को अपवित्र नहीं करना चाहते थे। हालाँकि, बाबासाहब यह भाषा सीखने के लिए इतने उत्सुक थे कि उन्होंने दो महीने में जर्मनी के माध्यम से संस्कृत भाषा सीखी और आर्थिक मदद के लिए ट्यूशन कक्षाएं देना शुरू कर दिया। मुंबई और दिल्ली में रहते हुए, उन्होंने संस्कृत में अधिक कुशल बनने के लिए क्रमशः पंडित होसकेरे नागप्पा शास्त्री (Pandit Hoskere Nagappa Sastri), गंगाधर नीलकंठ सहस्त्रबुद्धे और पंडित सोहनलाल शास्त्री (Pandit Sohanlal Shastri) जैसे गणमान्य व्यक्तियों से संस्कृत की शिक्षा ली। डॉ. आंबेडकर के संस्कृत के प्रति लगाव को दर्शाने वाली ‘संस्कृताभिमानी डॉ. आंबेडकर‘ एक किताब है।
पंडित होसकेरे नागप्पा शास्त्री के पोते बेलीगेरे मंजूनाथ (Beligere Manjunath) इंग्लिश Quora में लिखते हैं कि,
Dr. Ambedkar learnt sanskrit with my Grand Father Pandit Hoskere Nagappa Sastri, from 1930 to 1942, at Mumbai.
Pandit Nagappa Sastri also translated SATYA SHODHANAM, Gandhi’s Auto Biography into Sanskrit which is published by Bharatiya Vidya Bhavan. Pandit Nagappa Sastri was also made Prof of Sanskrit at Khalsa College Mumbai, which was established by Dr. Ambedkar in 1937.
I as an youngster have seen Dr. Ambedkar at my Grand Father’s home, discussing with my Grand father in chaste Sanskrit.
I would like to put this on record so that no one claims that Dr. Ambedkar did not know sanskrit. He wanted to read first hand all the scriptures, as he did not credit any value for English translations.
हिंदी अनुवाद:
डॉ. आंबेडकर ने मेरे दादाजी, पंडित होस्केरे नागप्पा शास्त्री से 1930 से 1942 तक मुंबई में संस्कृत सीखी। पंडित नागप्पा शास्त्री ने गांधीजी की आत्मकथा सत्य शोधनम् का संस्कृत में अनुवाद भी किया, जो भारतीय विद्या भवन द्वारा प्रकाशित हुआ। पंडित नागप्पा शास्त्री को डॉ. आंबेडकर द्वारा 1937 में स्थापित मुंबई के खालसा कॉलेज में संस्कृत के प्रोफेसर के रूप में भी नियुक्त किया गया। एक युवा के रूप में, मैंने डॉ. आंबेडकर को मेरे दादाजी के घर पर देखा है, जहां वे मेरे दादाजी से शुद्ध संस्कृत में चर्चा करते थे। मैं यह रिकॉर्ड पर रखना चाहता हूं ताकि कोई दावा न करे कि डॉ. आंबेडकर को संस्कृत नहीं आती थी। वे सभी शास्त्रों को स्वयं प्रथम हाथ से पढ़ना चाहते थे, क्योंकि उन्होंने अंग्रेजी अनुवादों को कोई महत्व नहीं दिया।
डॉ. आंबेडकर ने 1930 से 1942 तक मुंबई में पंडित होस्केरे नागप्पा शास्त्री से संस्कृत सीखी। पंडित नागप्पा शास्त्री 1937 में डॉ. आंबेडकर द्वारा स्थापित खालसा कॉलेज, मुंबई में संस्कृत के प्रोफेसर थे। नागप्पा शास्त्री के पोते बेलगारे मंजूनाथ ने अपने घर में डॉ. आंबेडकर को अपने दादा के साथ शुद्ध संस्कृत में चर्चा करते देखा है।
दिल्ली में अपने आवास पर, बाबासाहब पंडित सोहनलाल शास्त्री के साथ संस्कृत पर चर्चा करते थे और संस्कृत में संवाद भी करते थे।
बहुत से लोग संस्कृत भाषा से नफरत करते हैं। लेकिन वे यह नहीं जानते कि संस्कृत में न केवल ब्राह्मणी साहित्य है, बल्कि उससे कई गुना अधिक महायान बौद्ध साहित्य भी है। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर संस्कृत के महत्व को समझते थे, क्योंकी इसमें अनेक प्रकार के ज्ञान समाहित थे। इसलिए बाबासाहेब को स्कूली जीवन से ही संस्कृत सीखने का शौक था।
यदि बाबासाहेब को संस्कृत का ज्ञान नहीं होता, तो वे अपनी तीन पुस्तकें – “फिलॉसफी ऑफ हिंदुइज्म”, “रिडल्स इन हिंदुइज्म”, और “रेवोल्यूशन एंड काउंटर-रिवोल्यूशन इन एनशिएंट इंडिया” नहीं लिख पाते। इन पुस्तकों में संस्कृत के संदर्भ भरे पडे है।
ambedkar sanskrit – डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा संस्कृत में संवाद…
पश्चिम बंगाल के सांसद पं. लक्ष्मीकांत मैत्र डॉ. आंबेडकर के संस्कृत भाषा के ज्ञान के बारे में आश्वस्त नहीं थे। तो पं. मैत्र ने डॉ. आंबेडकर से संस्कृत में उनके कुछ संदेह पूछे और डॉ. आंबेडकर ने पंडित मैत्र के सभी प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में ही दिए। यह संवाद सुनकर संविधान सभा की बैठक के सभी सदस्य हैरान रह गए। यह खबर उस समय के कुछ प्रमुख समाचार पत्रों में भी प्रकाशित हुई थी।
बाबासाहब को संस्कृत भाषा का ज्ञान था, तो कुछ लोग किस आधार पर कहते हैं कि उन्हें संस्कृत नहीं आती थी? इसका कारण यह है कि उन्होंने अपनी पुस्तक ‘Who were the Shudras’ में संस्कृत के बारे में जो वक्तव्य दिया था।
अपनी Who Were the Shudras? पुस्तक के पान क्रमांक 9 में डॉ. आंबेडकर कहते है कि –
“I cannot claim mastery over the Sanskrit language, I admit this deficiency.” (मैं संस्कृत भाषा पर महारत का दावा नहीं कर सकता, मैं इस कमी को स्वीकार करता हूं।)
इस पुस्तक में बाबासाहब यह स्वीकार नहीं करते है कि उन्हें संस्कृत नहीं आती है, वो यह कहते है कि उन्हें संस्कृत पर महारत हासिल नहीं है।
‘संस्कृत भाषा को जानने में’ और ‘संस्कृत भाषा पर महारत हासिल करने में’ अंतर है। संस्कृत भाषा पर महारत हासिल नहीं इसका अर्थ संस्कृत को बिल्कुल भी न समझना ऐसी व्याख्या करना एक विरोधाभास है। जैसे बाबासाहेब अंग्रेजी, मराठी और अन्य भाषाओं में पारंगत थे, वैसे वे संस्कृत में पारंगत नही थे, यही इस पुस्तक के वाक्य का सरल अर्थ है। हालांकि डॉक्टर आंबेडकर विनम्रता से ये कहा क्योंकि वे संस्कृत के विद्वान थे।
बासाहब के कथन को उनके दृष्टिकोण से समझना चाहिए। डॉ. आंबेडकर के पास संस्कृत को अच्छी तरह समझने के लिए पर्याप्त ज्ञान था। वह कई भाषाओं में पारंगत थे। किसी भाषा को जानना या किसी भाषा का भाषाविद् होना उस भाषा में असाधारण महारत हासिल करना है।
ambedkar and manusmriti – क्या बाबासाहेब ने मनुस्मृति को पूरा पढ़ा था?
यह बताना मुश्किल है कि डॉ. आंबेडकर ने मनुस्मृति को संस्कृत में पढ़ा या नहीं। लेकिन इतना तो तय है कि उन्होंने पूरी मनुस्मृति पढ़ ली थी। मनुस्मृति दहन एक बड़ी घटना थी, और उससे बहुत पहले, बाबासाहेब ने अपने छात्र दिनों में ही मनुस्मृति को पढ़ा था। 2000 की ‘डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर’ फिल्म देखें, जिसमें वह शुरुवात में ही मनुस्मृति को पढते हुए दिखाई दे रहे हैं।
लोग यह भी दुष्प्रचार कर रहे हैं कि “बाबासाहब ने मनुस्मृति का गलत अंग्रेजी अनुवाद पढ़ा था। डॉ. आंबेडकर के समय मनुस्मृति का मराठी में अनुवाद नहीं हुआ था। मनुस्मृति के कई अनुवाद अंग्रेजी में किए गए थे और सभी अंग्रेजों द्वारा लिखे गए थे।” लेकीन क्या इन दावों में सच्चाई हैं?
कई लोग मनु (मनुस्मृति का रचयिता) के गलत लेखन एवं गलत विचारों के लिए ब्रिटिश लेखकों को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, लेकीन ऐसे तर्क व्यर्थ और तथ्यहीन भी हैं। यदि ब्रिटिश मनुस्मृति के अनुवाद में कोई गलत अनुवाद है, तो उसे इन लोगों द्वारा स्पष्ट किया जाना चाहिए। वह लेखक अंग्रेज थे, उन्होंने हम पर शासन किया, केवल इसलिए उन्होंने जो लिखा वह गलत है…!! (बिना पढ़े) मनुस्मृति को बहुत अच्छी किताब बताने का कोई मतलब नहीं है।
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने न केवल मनुस्मृति बल्कि भगवद गीता और वेदों को भी पढ़ा है।


मनुस्मृति को जलाने का काम बाबासाहब के ब्राह्मण अनुयायियों ने किया था, ये ब्राह्मण अनुयायी संस्कृत के उस्ताद थे। इसलिए, यह तर्क एक झूठ है कि मनुस्मृति का गलत अनुवाद पढने के कारण डॉ. आंबेडकर ने उसकी तीखी आलोचना की। प्रोफेसर हरि नरके लिखते हैं कि मनुस्मृति का समर्थन करने का अर्थ है बलात्कारियों, तस्करों, देशद्रोहियों का समर्थन करना।
डॉ. बाबासाहब आंबेडकर एक भाषाविद् थे, और वे संस्कृत भी जानते थे। किसी पुस्तक बिना पढ़े, बिना समझे, बिना संस्कृत आए कैसे दुनिया का महानतम पुस्तक प्रेमी उस पुस्तक को जला सकता है ?? समानता के महानतम अधिवक्ता ने असमानता की वकालत करने वाली किताब जलाई।
संदर्भ :
- महाराष्ट्र बोर्ड 10 वी संस्कृत पुस्तक
- संस्कृत उत्थानातील डॉ. आंबेडकरांचे योगदान! (डॉ. आंबेडकर का संस्कृत उत्थान में योगदान!)
- Master of Languages: The Polyglot in Dr. Ambedkar
- डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के संस्कृत अध्ययन के संदर्भ — ‘हिंदुस्तान’ अखबार के 12 सितंबर 1949 के अंक में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर संसद में संस्कृत में संवाद करते थे, का संदर्भ मिलता है। ‘दि स्टेट्समैन’, 11 सितंबर 1949 के अखबार में डॉ. आंबेडकर के संस्कृत प्रस्ताव का संदर्भ है। दै. ‘आज’ (हिन्दी), १५ सितम्बर १९४९; दि. लीडर (अंग्रेज़ी) इलाहाबाद, १३ सितंबर १९४९; द हिंदू, ११ सितंबर, १९४९.
- बाबासाहेब को संस्कृत क्यों सीखनी पड़ी? Why Dr Ambedkar had to learn Sanskrit?
- संस्कृताभिमानी डॉ. आंबेडकर : लेखक – डॉ. सुरेंद्र अज्ञात
- आंबेडकरवाद और संस्कृत अर्थात व्याकरण बनाम ब्राह्मणवाद : डॉ. सुरेंद्र अज्ञात
- Did Ambedkar know Sanskrit | string exposed by Rajat mourya
- Who did B R Ambedkar learn Vedas from? Did he know Vedic Sanskrit to begin with? (मयूर पटेल Mayur Patel का वह जवाब पढ़िए जिसको नागप्पा शास्त्री के पोते बेलीगेरे मंजूनाथ Beligere Manjunath का भी जवाब है, उनके अंग्रेजी लेखन को हिंदी में देखने के लिए इसे देखें।)
ये भी पढ़ें :
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हिन्दी quora के प्रश्न :
- क्या बाबासाहब भीमराव आंबेडकर संस्कृत जानते थे?
- क्या बाबासाहब आंबेडकर संस्कृत भाषा जानते थे?
- डॉ. बाबासाहब आंबेडकर को कितनी भाषाएँ आती थीं?
(धम्म भारत के सभी अपडेट पाने के लिए आप हमें फेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।)
I totally disagree to the statement of Ambedkari n his auto bioghraphy about his sanskrit teacher because he studied in a convent school named Elphinstone school and in convent schools there were no sankrit subject.
Can you put some light on this because his schooling started in 1897 and there was no untouchability in convent school.
I am awaiting a reply on the same.
You have not read or studied anything on the relevant subject, you are only reasoning by emotion.
Do you mean there were no Hindu Brahmin teachers in Elphinstone school? Elphinstone school had a few Brahmin teachers who taught Sanskrit, and refused to teach Sanskrit to the untouchables.
In the past and even now, untouchability and casteism are found in every sector in India, education is no exception. So it is your baseless claim that there was no untouchability in convent schools.