आंबडवे डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का पैतृक गाँव है। आंबेडवे को ‘स्फूर्ति भूमि‘ के नाम से जाना जाता है। बाबासाहब के पूर्वज आंबेडवे (Ambadawe) गाँव में रहते थे। बाबासाहब आंबेडकर के सम्मान में यहां एक स्मारक भी बनाया गया है। आज हम इसी आंबडवे गांव के बारे में और बाबासाहब के पूर्वजों के इतिहास के बारे में जानने जा रहे हैं।
Dr Babasaheb Ambedkar’s native village Ambadawe
कैसा है बाबासाहब का पैतृक गांव?
यह रत्नागिरी जिले के मंडनगढ़ तालुका में एक छोटा सा गाँव आंबडवे है। यह गांव मंडनगढ़ से 17 किमी की दूरी पर स्थित है।
इसका निकटतम शहर ‘खेड़’ है, जो 60 किमी दूर है। इस आंबेडवे गांव को भारत भर ‘डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के पैतृक गांव’ के रूप में जाना जाता है।
आंबेडवे गांव का क्षेत्रफल 324.33 हेक्टेयर है। 2011 की जनगणना के अनुसार इस गांव में 64 परिवार हैं और उनकी कुल जनसंख्या केवल 240 है। 240 लोगों में से 111 पुरुष और 129 महिलाएं हैं। गांव में 57 अनुसूचित जाति (SC) और 11 अनुसूचित जनजाति (ST) से सम्बंधित लोग हैं।
ऐसा कहा जाता है की एक ब्रिटिश विद्वान द्वारा यह पता लगाया गया था कि आम्बेडवे डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के पूर्वजों का पैतृक गाँव था। तब तक यह गांव उपेक्षित ही था।
आंबडवे के एक सकपाल परिवार में डाॅ. बाबासाहब आंबेडकर का जन्म हुआ। आज भी इस स्थान पर सकपाल परिवार के कई घर हैं।
डॉ. आंबेडकर के पूर्वजों का इतिहास
डॉ. आंबेडकर के पूर्वज आंबेडवे गाँव में रहते थे। उनका अंतिम नाम यानि सरनेम ‘सकपाल’ था। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के दादा मालोजी इसी सकपाल परिवार से थे।
मालोजी सकपाल भारतीय ब्रिटिश सेना में एक सैनिक थे, और उनके दो बेटे (बाबासाहब के पिता और चाचा) ने भी भारतीय सेना में नौकरी करते थे। इसलिए उन्हें इस गांव से बाहर जाना पड़ा।
1991 से रामजी सकपाल अपने परिवार के साथ रहकर सेना चौकी ‘महू’ (मध्य प्रदेश) में सेना की नौकरी कर रहे थे। वहां 14 अप्रैल, 1891 को डाॅ. बाबासाहब आंबेडकर का जन्म हुआ। अगले कुछ वर्षों में परिवार वापस आकर महाराष्ट्र में बस गया।
भले ही उनका मूल उपनाम या सरनेम ‘सकपाल’ था, लेकिन बाबासाहब के पिता ने 7 नवंबर 1900 को सातारा के गवर्नमेंट हाई स्कूल में अपने बेटे का उपनाम ‘आंबेडवेकर’ दर्ज कराया।
क्योंकि पहले कोंकण में लोग अपना उपनाम अपने गाँव के नाम पर रखते थे; जिसमें गांव के नाम के अंत में ‘कर’ शब्द जोड़ा जाता था। इस प्रकार बाबासाहब को ‘आंबेडवे’ गांव से उपनाम ‘आंबेडवेकर‘ मिला।
लेकिन दूसरी ओर, कई स्थानों पर गांव ‘आंबेडवे’ और बाबासाहेब का उपनाम ‘आंबेडवेकर’ को गलत तरीके से क्रमशः ‘अंबावडे या आंबवडे’ और ‘अंबावडेकर या आंबवडेकर’ लिखा गया है।
सातारा के सरकारी हाई स्कूल, जिसका नाम अब प्रतापसिंह हाई स्कूल है, में बाबासाहब को पढ़ाने के लिए कृष्णाजी केशव आंबेडकर नाम के ब्राह्मण समुदाय के एक शिक्षक थे।
स्कूल रजिस्टर में दर्ज उपनाम ‘आंबडवेकर’ का उच्चारण करना उन्हें कठिन लगता था; इसलिए मेरा नाम ‘आंबेडकर’ रख लो, ऐसा उन्होंने भीम को सुझाव दिया। बाल भीम ने तुरंत उनकी बात मान ली और बाबासाहब का उपनाम आंबडवेकर से आंबेडकर हो गया। इसे स्कूल में रिकॉर्ड किया गया था।
बचपन में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर एक बार अपने चचेरे भाई की शादी के अवसर पर अपने परिवार के साथ आंबेडवे आये थे।
- डॉ. बाबासाहब आंबेडकर की शैक्षिक यात्रा (marathi)
डॉ. बाबासाहब आंबेडकर स्मारक, आंबडवे
आंबेडवे में विश्वभूषण भारतरत्न डॉ. बाबासाहब आंबेडकर स्मारक का निर्माण किया गया है। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के पैतृक घर को ही स्मारक में बदल दिया गया है। आंबेडवे में डॉ. आंबेडकर का घर एक पुरानी झोपड़ी थी। इसे तोड़कर महाराष्ट्र सरकार ने इस स्थान पर आंबेडकर स्मारक बनवाया है।
12 अप्रैल 2010 को डॉ. बाबासाहब आंबेडकर स्मारक के सामने पुणे की अशोक सर्वांगिन विकास संस्था ने एक अशोक स्तंभ और एक शिलालेख बनवाया है।
इस स्मारक में भगवान गौतम बुद्ध और बोधिसत्व डॉ. बाबासाहब आंबेडकर की मूर्तियाँ हैं। साथ ही बाबासाहब का अस्थि कलश भी यहां है। स्मारक में रमाबाई आंबेडकर, बाबासाहेब आंबेडकर, गौतम बुद्ध, मुकुंदराव आंबेडकर, रामजी आंबेडकर, यशवंत आंबेडकर की तस्वीरें भी लगी हैं।
अशोक सर्वांगिन विकास सोसायटी द्वारा बनवाए गए शिलालेख पर निम्नलिखित मराठी अक्षर उत्कीर्ण हैं…
स्फूर्तीभूमी
(शिलालेख)
हा अशोकस्तंभ आणि भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरांचा पुतळा आपणा सर्वांसाठी स्फूर्ती आहे. तसेच डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरांचे मूळगाव खऱ्या अर्थाने आपले प्रेरणास्थळ देखील आहे. म्हणून या भूमीला संस्थेने ‘स्फूर्तीभूमी’ मानून हा स्तंभ आणि पुतळा उभा केला आहे. आंबेडकरी अनुयायांनी या मातीची गुळ कपाळी लावून त्यांच्या कार्यातून सतत स्फूर्ती आणि प्रेरणा घेण्याचा संकल्प करावा आणि तथागतांचा, सम्राट अशोकांचा, डॉ. बाबासाहेबांचा विचार मनामनात रुजवावा.
हिंदी अनुवाद –
स्फूर्ति भूमि
(शिलालेख)
यह अशोक स्तम्भ और भारतरत्न डाॅ. बाबासाहब आंबेडकर की प्रतिमा हम सभी के लिए स्फूर्ति (प्रेरणा) है। साथ ही डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का पैतृक गाँव सही मायनों में हमारी प्रेरणा स्थली भी है। इसलिए संगठन ने इस भूमि को ‘स्फूर्ति भूमि’ मानकर यह स्तंभ और प्रतिमा स्थापित की है। आंबेडकरवादी अनुयायियों को इस मिट्टी की धूल अपने माथे पर लगाकर उनके कार्यों से निरंतर स्फूर्ति और प्रेरणा लेने का संकल्प लेना चाहिए; तथा तथागत (बुद्ध), सम्राट अशोक और डाॅ. बाबासाहब के विचार हृदय में बसाने चाहिए।
राष्ट्रपति का दौरा
12 फरवरी 2022 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने आंबेडवे गांव का दौरा किया। राष्ट्रपति कोविन्द ने आम्बडवे को बाबासाहब के जीवन के उन महत्वपूर्ण स्थानों में शामिल करने का आश्वासन दिया था, जिन्हें भारत सरकार विकसित कर रही है।
सारांश
इस लेख में आपने डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के पैतृक गांव आंबेडवे के बारे में जानकारी प्राप्त की। अगर आपको यह जानकारी पसंद आई हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें।
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