23 सितंबर – भीम संकल्प दिवस: डॉ. आंबेडकर का ऐतिहासिक संकल्प जो बदला इतिहास

Last Updated on 23 September 2025 by Sandesh Hiwale

आज 23 सितंबर है, यानी संकल्प दिवस (Sankalp Divas)। यह दिन डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के जीवन की उस घटना से जुड़ा है, जिसने न केवल उनके जीवन को दिशा दी, बल्कि भारत के करोड़ों वंचितों को जातिप्रथा की जंजीरों से मुक्ति का रास्ता दिखाया।

भीम संकल्प दिवस - 23 September - Sankalp Diwas
भीम संकल्प दिवस – 23 September – Sankalp Diwas

23 सितंबर का दिन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में जाना जाता है। यह वह दिन है जब डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने जातिवाद की जड़ों को उखाड़ फेंकने का ऐतिहासिक संकल्प लिया था।

भीम संकल्प दिवस (Bhim Sankalp Diwas) के रूप में मनाया जाने वाला यह दिवस हमें याद दिलाता है कि कैसे एक अपमान की रात ने करोड़ों दलितों और वंचितों के जीवन को बदल दिया। इस लेख में हम संकल्प दिवस के इतिहास, महत्व और डॉ. आंबेडकर के उस महान फैसले पर गहराई से चर्चा करेंगे। यदि आप अस्पृश्यता एवं  जाति व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष की कहानी जानना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए है।

 

‘ब्लैक’ गांधी और ‘अछूत’ आंबेडकर!

हमारे देश में अक्सर यह प्रसंग सुनने को मिलता है कि दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी को उनके सामान सहित ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था। अंग्रेजों ने उन्हें ‘ब्लैकयानिकाला कहकर यह अपमानजनक व्यवहार किया था। यह घटना इतिहास की किताबों और जनमानस में गहराई से दर्ज है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ वैसा ही प्रसंग डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के जीवन में भी घटा था? दुख की बात यह है कि उस घटना का ज़िक्र भारतीय समाज बहुत कम करता है।

बाबासाहेब को भी उनके सामान सहित किराए पर लिए गए घर से बाहर निकाल दिया गया था। फर्क सिर्फ इतना था कि गांधी जी के साथ अन्याय करने वाले अंग्रेज थे, जबकि बाबासाहेब के साथ यह अमानवीय व्यवहार भारतीय हिंदुओं और पारसियों ने उन्हें ‘अछूतयानि दूषित कहकर किया था।

सोचिए, गांधी ने ट्रेन का पूरा किराया चुकाया था और बाबासाहेब ने घर का किराया भी दिया था। फिर भी हमें इतिहास में बार-बार गांधी का ही किस्सा सुनाया जाता है, जबकि बाबासाहेब के साथ हुए अन्याय को भुला दिया गया। क्यों? शायद इसलिए कि विदेशी शासकों की गलतियाँ प्रचार में लाई जाती हैं, पर अपने भारतीय समाज की गलतियों पर पर्दा डाल दिया जाता है।

 

Bhim Sankalp Day: इतिहास और महत्व

आज 23 सितंबर 2025 है, यानी संकल्प दिवस (Sankalp Divas) या भीम संकल्प दिवस (Bhim Sankalp Diwas)। यह दिन डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर के जीवन की उस घटना से जुड़ा है, जिसने न केवल उनके जीवन को दिशा दी, बल्कि भारत के करोड़ों वंचितों को जातिप्रथा की जंजीरों से मुक्ति का रास्ता दिखाया।

हजारों वर्षों की दासता को चुनौती देने वाला यह संकल्प आज भी प्रासंगिक है, खासकर जब जातिवाद और भेदभाव की घटनाएं समाज में जारी हैं। इस लेख में हम संकल्प दिवस क्या है, भीम संकल्प दिवस कब मनाया जाता है, इसके इतिहास, महत्व और कुछ प्रेरणादायक उद्धरणों (Bhim Sankalp Day Quotes) पर विस्तार से बात करेंगे।

 

संकल्प दिवस क्या है? (What is Sankalp Divas?)

संकल्प दिवस (Sankalp Diwas) वह दिन है जब डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने 23 सितंबर 1917 को गुजरात के वडोदरा (तत्कालीन बड़ौदा) में एक बगीचे में बैठकर दलितों और अछूतों के उत्थान का संकल्प लिया। इसे भीम संकल्प दिवस (Bhim Sankalp Divas) या संकल्प दिन (Sankalp Din) भी कहा जाता है।

इस दिन बाबासाहब ने फैसला किया कि वे अपना पूरा जीवन वंचित समुदायों को उनके अधिकार दिलाने में लगा देंगे। यह संकल्प न केवल व्यक्तिगत था, बल्कि सामाजिक क्रांति की नींव रखने वाला था।

आज यह दिन गुजरात और पूरे भारत में लाखों आंबेडकरवादियों द्वारा मनाया जाता है, जहां लोग संकल्प भूमि पर इकट्ठा होकर बाबासाहब के वचनों को दोहराते हैं।

Sankalp Bhoomi Badoda
दिल्ली के डॉ. आंबेडकर नेशनल मेमोरियल में ‘संकल्प भूमि’ की छवि, जिसमें 1917 में बड़ौदा के बाग में बैठे बाबासाहब को ऐतिहासिक संकल्प करते हुए दर्शाया गया है 

भीम संकल्प दिवस कब मनाया जाता है? (When is Bhim Sankalp Day Celebrated?)

भीम संकल्प दिवस (Bhim Sankalp Day) हर साल 23 सितंबर को मनाया जाता है। यह तारीख 1917 की उस घटना से जुड़ी है जब बाबासाहब को जातिवाद के कारण अपमानित किया गया।

संकल्प दिवस 23 सितंबर (Sankalp Divas 23 September) को विशेष रूप से गुजरात के वडोदरा में संकल्प भूमि पर कार्यक्रम आयोजित होते हैं। 2025 में भी, जैसे सोशल मीडिया पर हाल की पोस्ट्स में देखा गया है, लोग इस दिन को जय भीम के नारों के साथ मना रहे हैं और बाबासाहब के संकल्प को याद कर रहे हैं।

 

संकल्प दिवस का इतिहास: बाबासाहब का अपमान और महान संकल्प (History of Sankalp Divas)

1913 में, महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ की छात्रवृत्ति से डॉ. आंबेडकर अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने गए। समझौते के अनुसार, उन्हें 10 साल बड़ौदा रियासत में सेवा देनी थी।

1917 में, 25 वर्षीय डॉ. भीमराव आंबेडकर अपने बड़े भाई के साथ वडोदरा पहुंचे। लेकिन ‘अछूत’ होने के कारण उन्हें रेलवे स्टेशन पर लेने कोई नहीं आया। आवास की तलाश में उन्होंने अपना नाम बदलकर एक पारसी धर्मशाला में जगह ली।

रात में, गुस्साए हिंदू और पारसियों का समूह लाठी-डंडों के साथ आया और उन्हें ‘अछूत’ कहकर घर से बाहर निकाल दिया। उनका सामान फेंक दिया गया। कोई होटल या घर उन्हें शरण नहीं दे रहा था। आखिरकार, वे सार्वजनिक बगीचे (अब सयाजीराव बगीचा) में एक बरगद के पेड़ के नीचे रात बिताने को मजबूर हुए।

उस उदास रात में उन्होंने सोचा: “जब मेरे जैसे शिक्षित व्यक्ति के साथ ऐसा व्यवहार हो रहा है, तो मेरे समुदाय के गरीब और अशिक्षित लोगों के साथ क्या होता होगा?” यहीं उन्होंने संकल्प लिया: “मैं अपना जीवन वंचितों के उत्थान में लगा दूंगा और उन्हें मानवाधिकार दिलाऊंगा।

अगली सुबह वे मुंबई लौट गए। बड़ौदा में नौकरी के दौरान भी उन्हें अपमान सहना पड़ा – पानी नहीं दिया गया, फाइलें दूर से फेंकी जातीं, और पुस्तकालय में प्रवेश प्रतिबंधित था। महाराजा से शिकायत के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई।

यह घटना महात्मा गांधी की दक्षिण अफ्रीका वाली ट्रेन घटना से मिलती-जुलती है, लेकिन यहां अपमान करने वाले स्वदेशी थे, इसलिए इसे कम चर्चा मिलती है।

 

संकल्प भूमि क्या है? (What is Sankalp Bhoomi?)

संकल्प भूमि गुजरात के वडोदरा में स्थित एक ऐतिहासिक स्थल है, जहां बाबासाहब ने अपना संकल्प लिया। 14 अप्रैल 2006 को इस जगह का नाम ‘संकल्प भूमि‘ (Sankalp Bhoomi) रखा गया। यहां एक स्मारक है, जहां हर साल लाखों लोग आते हैं।

गुजरात सरकार ने यहां डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का भव्य मेमोरियल बनाने का फैसला किया है। यह जगह अब बौद्ध और अनुसूचित जाति तीर्थ स्थल के रूप में विकसित हो चुकी है, जहां लोग बौद्धधम्म की दीक्षा लेते हैं। दिल्ली के डॉ. आंबेडकर नेशनल मेमोरियल में भी इस घटना की छवि प्रदर्शित है।

 

भीम संकल्प दिवस का महत्व (Significance of Bhim Sankalp Day)

यह दिवस हमें सिखाता है कि अपमान को कैसे शक्ति में बदला जाए। बाबासाहब से पहले कई संतों ने अछूतों के उत्थान का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हुए। डॉ. आंबेडकर ने 5000 साल की दासता को 40 वर्षों में बदल दिया। उन्होंने भारतीय संविधान बनाया, जिसने समानता का अधिकार दिया।

आज भी, जैसे कि 2025 में सोशल मीडिया तथा टीवी की सार्वजनिक चर्चाओं से पता चलता है, लोग इस दिन को जातिवाद के खिलाफ संकल्प लेने के रूप में मना रहे हैं।

 

भीम संकल्प दिवस उद्धरण (Bhim Sankalp Day Quotes)

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के कुछ प्रेरणादायक उद्धरण जो इस संकल्प से जुड़े हैं:

  • Be Educated, Be Organised and Be Agitated.” – शिक्षा ग्रहण करो, संगठित हो और संघर्ष करो।
  • They cannot make history who forget history.” – जो इतिहास भूल जाते हैं, वे इतिहास नहीं रच सकते।
  • Freedom of mind is the real freedom.” – मन की स्वतंत्रता ही असली स्वतंत्रता है।
  • Though I was born a Hindu, I solemnly assure you that I will not die as a Hindu.” – मैं हिंदू पैदा हुआ, लेकिन हिंदू मरूंगा नहीं।

ये उद्धरण हमें संकल्प दिवस की भावना से जोड़ते हैं।


भीम संकल्प दिवस हमें याद दिलाता है कि एक व्यक्ति का संकल्प पूरे समाज को बदल सकता है। आज के समय में, जब जातिवाद की घटनाएं बढ़ रही हैं, हमें बाबासाहब के रास्ते पर चलना चाहिए। जय भीम!


  • मैंने “संकल्प भूमि” नाम से मराठी विकिपीडिया पर एक लेख भी लिखा है।

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5 thoughts on “23 सितंबर – भीम संकल्प दिवस: डॉ. आंबेडकर का ऐतिहासिक संकल्प जो बदला इतिहास

  1. शानदार लेख इस लेख से हमें भी समाज के लिए कुछ करने का संकल्प लेना चाहिए।

  2. Yours knowledge is most healthy and true to sleep people approximately 85 to 90 % citizens of India .
    So great thankful

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